Friday, September 23, 2011

बंद कमरे में रहकर उनसे दूरिया बनाई हमने
कम्बक्त ये हवा हमारा हाल उन तक पहुंचती रही
- महेश जाधव
वो अपने दर्द से दुखी है...कोई बतायें उन्हें...दर्द हमारे हालात पर रोता है - महेश जाधव
तेरे यादों को, दुर समंदर मे फेंक आया था
पता नहीं कैसे जालिम, मुझे ढुंढते हुए फिर किनारे पर आई
- महेश जाधव
बेवाफाई कर हँस रहे थे वो, हम भी खुश थे कि मौत से पहले असलियत देख ली - महेश जधाव
दुरिया सुकुन देती हमे, तो अश्कों कि जरुरत न होती - महेश जधाव
हमारी दास्तां कोई उन्हे भी सुनाए, जिन्हे लगता है हम दिल से नावाकिफ़ है - महेश जधाव

No comments: